सस्ते में डॉक्टरी पढ़कर अब सामाजिक जिम्मेदारी से नहीं बच सकते डॉक्टर
सेहतराग टीम
देश भर में चिकित्सा पेशा पिछले कुछ समय से लगातार खबरों में है। एक ओर जहां डॉक्टरों का एक खेमा अभी केंद्र सरकार द्वारा बनाए जा रहे राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग के खिलाफ आंदोलन और हड़ताल कर रहा है वहीं ये डॉक्टर अपनी सामाजिक जिम्मेदारी निभाने में विफल साबित हो रहे हैं। पूरी तरह सरकारी सब्सिडी पर डॉक्टरी की पढ़ाई करने वाले डॉक्टर भी दूर-दराज के क्षेत्रों में काम नहीं करना चाहते। मगर अब शायद ऐसा नहीं होगा।
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने गुरुवार को राज्य के सरकारी मेडिकल कालेजों से रियायती फीस पर एमबीबीएस का कोर्स करने वाले डॉक्टरों से पूर्व समझौते के अनुसार आवश्यक रूप से पांच साल दूरस्थ स्थानों पर सेवाएं देने या अपने संस्थानों को 18 प्रतिशत ब्याज के साथ पूरी सब्सिडी वापस करने का आदेश दिया है। यानी अगर ये डॉक्टर एमबीबीएस करने के बाद राज्य के दुर्गम इलाकों में काम करने नहीं जाएंगे तो उन्हें लाखों रुपये मेडिकल कॉलेजों को चुकाने होंगे। दूरस्थ स्थानों पर सेवा देने के नियम से छूट चाहने वाले चिकित्सकों को न्यायालय ने ये निर्देश दिया है।
गौरतलब है कि उत्तराखंड में मेडिकल की पढ़ाई करने के इच्छुक छात्रों को एक कॉन्ट्रैक्ट साइन करना होता है जिसमें पढ़ाई के बाद पांच साल दुर्गम इलाकों में सेवा देने की शर्त होती है। डॉक्टर बनने के लालच में पहले तो ये छात्र सारी शर्तें मान लेते हैं मगर पढ़ाई पूरी करने के बाद इस शर्त में छूट चाहने लगते हैं।
ऐसे ही कुछ डॉक्टरों ने इस शर्त से छूट के लिए उत्तराखंड हाईकोर्ट में याचिका दी थी जहां एकल पीठ ने उन्हें राहत देते हुए इस शर्त से आजाद कर दिया था मगर राज्य सरकार ने फैसले को बड़ी पीठ में चुनौती दी।
राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने एकल पीठ का फैसला पलट दिया। खंडपीठ ने चिकित्सकों को राज्य सरकार के साथ समझौते के अनुसार फीस में ली रियायत के एवज में दूरस्थ क्षेत्रों में डयूटी ज्वाइन करने या ब्याज सहित सामान्य फीस सरकार को लौटाने के आदेश दिए।
राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय की एकल पीठ के चिकित्सकों को राहत देने के आदेश को चुनौती देते हुए कहा था कि इन चिकित्सकों ने पढाई करने के लिए सरकारी योजना का लाभ लिया और अब प्रदेश के दूरस्थ स्थानों में सेवायें देने को तैयार नहीं हैं।
राज्य सरकार के मुख्य स्थायी अधिवक्ता परेश त्रिपाठी ने बताया कि पीठ के आदेश के बाद इन डॉक्टरों को छह माह के भीतर दूरस्थ स्थानों पर अपनी सेवायें देनी होंगी या 18 प्रतिशत ब्याज के साथ फीस लौटानी होगी।
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